यथार्थ कृत्यात्मकता में निहित होता है |इसलिए उसे केवल क्रियात्मक रूप से जाना जा सकता है |हर वह तथ्य जो क्रियमाण या प्रवृत्तमान है ,यथार्थ है |यथार्थ का प्रकटीकरण गति या प्रवृत्ति के द्वारा होता है ,इसलिए गति या प्रवृत्ति यथार्थ के रूपाकार हैं |जो घटित हो रहा है ,वह यथार्थ है और जिसके घटित होने की संभाव्यता है ,वह संभावना है |यथार्थ अस्तित्वभूत होता है ,उसका अवबोधन इन्द्रियों के माध्यम से संभव है लेकिन संभावना परोक्ष और अनगढ़ होती है |यथार्थ एक साकार संभावना होती है जबकि संभावना एक गर्भित यथार्थ होता है ,जिसके अवतरण का न तो समय निशित होता है और न स्वयं अवतरण |
यथार्थ वह है जो अपने विद्यमान रूप में है और आदर्श वह है जो देश, काल और परिस्थिति के अनुसार वांछनीय और उचित है |इसलिए आदर्श हमेशा श्रेयस्कर होते हैं |कहना न होगा कि हमारा बल आदर्श के यथार्थीकरण पर होना चाहिए |
.....श्रीश राकेश
यथार्थ वह है जो अपने विद्यमान रूप में है और आदर्श वह है जो देश, काल और परिस्थिति के अनुसार वांछनीय और उचित है |इसलिए आदर्श हमेशा श्रेयस्कर होते हैं |कहना न होगा कि हमारा बल आदर्श के यथार्थीकरण पर होना चाहिए |
.....श्रीश राकेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें