यज्ञ को श्रीपाद अमृत डांगे वैदिक जनों के उत्पादन का सामूहिक ढंग मानते हैं जबकि देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय इसे सामूहिक उत्पादन का आनुष्ठानिक पक्ष मानना चाहते हैं लेकिन मेरे विचारानुसार यज्ञ वितरण का सामूहिक ढंग है |वर्गपूर्व समाज में कबीले के हर सदस्य द्वारा किये गए उपार्जन को कबीले की संपत्ति माना जाता था तथा व्यक्तिगत संपत्ति का कोई अस्तित्व नहीं था और कबीले की एकमात्र संपत्ति निर्वाह- द्रव्य या खाद्य पदार्थ हुआ करती थी |यज्ञ, कबीले के श्रम- सक्षम सदस्यों द्वारा किये गए उपार्जनों का कबीले के सभी सदस्यों में यथायोग्य वितरण का एक सामूहिक ढंग है और संभवतः इस अवसर पर होने वाला कोई अनुष्ठान या कर्मकांड भी |यज्ञ के निमित्त आने वाली सामग्री को 'साकल्य' कहने के पीछे भी यही भाव-व्यंजना मालूम होती है|
...........श्रीश राकेश
...........श्रीश राकेश
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