बुधवार, 11 सितंबर 2013

एक सवाल

चालीस-आठ  लाशों  के  ऊँचे  ढेर पर |
कुछ तो बोलो ,इस प्रायोजित अंधेर पर ||
भाजपा, सपा, बसपा  सारे  हैं  मौन   |
है  धुला  दूध  का  बोलो  इनमें  कौन ||
सेंके  सबने  इस  दावानल  में  हाथ  |
है  दिया  आततायी  लोगों  का साथ ||
सबने मिल  रौंदी  भाईचारे की छाती |
कर डाली तहस-नहस गंगा-जमुनी थाती ||
इन घड़ियाली आंसूओं का अब क्या मानी|
पहले की  आगजनी ,फिर डाल रहे पानी  ||
लोगों  का   नेताओं  पर   नहीं भरोसा है  |
सब ने दंगों के लिए इन्हीं  को कोसा है ||
ये क्या पीड़ित लोगों को न्याय दिलाएंगे |
आधी  सहायता तो ये  ही  खा  जायेंगे ||

          श्रीश राकेश जैन |

दंगों के विरोध में

नफरत की विषबेल ये ,यहाँ किसने आकर बोई |
लहू बहा है किसका ,देख बता सकता क्या कोई ?
छोटी-छोटी बातों को ,फिर तूल दे रहे लोग    |
यह सोची-समझी साजिश है,नहीं महज संयोग ||
सिर पर देख चुनाव ,सियासी लोग चल गए चाल |
जाति,धर्म की चिंगारी ,दी जानबूझ कर डाल  ||
कितने मासूमों ने अपने अभिभावक खोये हैं ?
कितने बूढ़े बापों ने  , बेटों के शव ढोए हैं   ??
जोह रहे हैं कितने ही परिजन अपनों की राह ?
लगा दरकने उनके भी अब चेहरे का उत्साह ||
बेकसूर लोगों की ,  जब भी हत्या होती है   |
धरती माता पीट-पीट कर छाती रोती है  | |
हिन्दू हों या मुसलमान ,हैं भारत माँ के लाल |
मचा हुआ है जाति धर्म पर फिर क्यों यहाँ बवाल ||
इन टूटे लोगों को फिर से खड़ा करेगा कौन ?
किंकर्तव्यविमूढ़ राज्य है इस सवाल पर मौन ||
                               श्रीश राकेश जैन |