शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

डिजिटल साया और बच्चे

 कहते हैं कि लोगों को उनकी संगति से पहचाना जाता है क्योंकि हम जो कुछ जानते हैं वह या तो अपने अनुभव से सीखते-जानते हैं या दूसरों से मिली जानकारी से। हमारी जानकारी का बहुलांश  स्वानुभव के बजाय अर्जित अधिक होता है। मातापिता, गुरुजन, मित्र और पुस्तकें हमारे ज्ञानार्जन के सामान्य स्रोत है। लेकिन अब डिजिटल माध्यम इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाने लगे हैं। मोबाइल की सर्वसुलभता ने इसके प्रभाव की व्यापकता को और बढ़ा दिया है। जैसे ब्लेड का इस्तेमाल हजामत करने के लिए होता है लेकिन उसका दुरुपयोग जेब काटने के लिए भी किया जाता है।उसी तरह मोबाइल के जरिए सकारात्मक जानकारी भी पलक झपकते जुटाई जा सकती है वैसे ही नकारात्मक और वर्जनीय जानकारी जुटाई जा सकती है।सेक्स और पोर्न जैसे विषयों, जिनमें वयस्कों की दिलचस्पी होती है,वे अब कच्ची उम्र के बच्चों के लिए भी सहज सुलभ हैं। जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा देना सुरक्षित नहीं होता वैसे ही  बच्चों को हासिल यह अवांछित जानकारी उन्हें उम्र से पहले वयस्क बना देती और उसके जो दुष्परिणाम होते हैं उसे बताने की जरूरत नहीं है। फेसबुक जैसा लोकप्रिय डिजिटल माध्यम चाहे-अनचाहे अश्लील सामग्री परोसता रहता है।कालगर्ल फेसबुक वाच के जरिए उत्तेजक विजुअल डालकर लोगों को उकसाती हैं।यह बड़ी चिंताजनक स्थिति है। चूंकि पढ़ाई-लिखाई एक जरूरी टूल होने की वजह से मोबाइल आज हर किशोर के पास है इसलिए उनमें यह विवेक और समझ पैदा करने की जरूरत है कि उनके लिए क्या हितकर और जरूरी है और कौन से विषय अवांछनीय हैं। गर्लफ्रेंड और बायफ्रेंड बनाना न केवल फैशन है बल्कि स्टेटस सिंबल बन रहा है। इसलिए आपकी जरा-सी लापरवाही आपके बच्चों को अंधेरे गर्त में धकेल सकती है। गूगल का सर्च इंजन काफी हद तक अश्लील सामग्री को फिल्टर करता है लेकिन यूसी ब्राउज़र, ओपेरा ब्राउज़र इस तरह की वर्जनीय सामग्री को सर्च करने में मददगार बनता है। इसलिए केवल गूगल क्रोम जैसे ब्राउजर को वरीयता दें। बच्चों पर अपनी पैनी नजर रखें। वे आपको ब्लफ तो नहीं दे रहे हैं इस बात को लेकर सतर्क रहें।🤔