शनिवार, 10 दिसंबर 2011

कृष्ण और कंस का संघर्ष

कृष्ण भारतीय पुराकथाओं के एक विशिष्ट नायक हैं |कृष्ण और कंस के संघर्ष की कथा सबको विदित ही है |इस संघर्ष की महागाथा को सात्विक और तामसिक वृत्तियों के संघर्ष के रूप में चित्रित किया जाता है |किन्तु मेरे विचारानुसार कृष्ण और कंस मातृसत्ता और पितृसत्ता के प्रतिनिधि हैं और उनके बीच का संघर्ष वस्तुतः मातृसत्ता और पितृसत्ता के बीच का संघर्ष है |मातृसत्ताक समूहों में उत्तराधिकार पुत्र को न मिलकर पुत्री के पुत्र या बहिन के पुत्र को मिलता है |कई जनजातियों में यह परंपरा देखने को मिलती है |देवकी चूँकि कंस की चचेरी बहिन थी इसलिए कंस उत्तराधिकार छिन जाने की आशंका से देवकी के होने वाले पुत्र से भयभीत था |कंस का काल कदाचित मातृसत्ता के पितृसत्ता में संक्रमण का काल रहा है |लेकिन जनसाधारण के मन में मातृसत्ता के प्रति गहरे पैठे आग्रह के चलते राजा कंस को अपने  प्रजाजनों और कुछ सामंतों के प्रतिरोध की आशंका रही होगी ,एतदर्थ कंस देवकी के कथित जीवित बचे पुत्र की षडयंत्रपूर्वक हत्या कर अपना मार्ग निष्कंटक कर लेना चाहता था |मथुरावासियों को जब देवकी के पुत्र के जीवित होने के विषय में विदित हुआ होगा तो मातृसत्ता के प्रति अपने पारंपरिक व्यामोह और आग्रह के कारण मथुरा का जनमत कंस के विरुद्ध हो गया और उन्होंने परम्पराद्रोही कंस का वध कर सिंहासन पर उसके वास्तविक उत्तराधिकारी को बैठाया ||
                 ..............श्रीश राकेश 

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