मैं तुम से तुम्हारा धर्म नहीं पूछूँगा ,
जाति भी नहीं ,यह भी नहीं की तुम
वामपंथी हो या दक्षिणपंथी या सनातनी
संत, महंत या फिर मठाधीश
पर यह तो कहो कि कैसे इतने सहज ,अतिमानवीय ,
निष्काम ,निर्लिप्त ,निर्विकार ,निष्पक्ष और भव्य बन पाए तुम ?
मैं तुम से यह नहीं कहूँगा कि मेरी मति ,समझ ,जीवन के मूल्य
तुम्हारे मूल्यों से श्रेष्ठ हैं और यह भी नहीं कि तुम्हारे हेय हैं ,
पर महामना सच -सच कहो कि क्या तुम्हारा आचरण ,तुम्हारी
समझ का संश्लेषित रूपांतरण है या ठीक उसके विपरीत
तुम्हारी समझ ,मीमांसा ,प्रस्थापना ,अवधारणाओं का खंडन /
मैं यह भी नहीं पूछूँगा कि तुम शिक्षक ,पत्रकार ,वैज्ञानिक ,राजनीतिज्ञ हो ,
पर मेरे प्रियमित्र ,सहस्राव्दियों का यह द्वैत समझ ,आचरण के बीच
कितने विरोधी ,एक- दुसरे को निषेधित करने वाले खानों में बाँट गया है मानवता को
देश, धर्म ,संस्कृति ,नस्लों ,जातियों के नाम पर /
सच क्या तुमको वास्तव में इसका अहसास नहीं होता
कि धीरे- धीरे सहस्राव्दियों से जीवन मूल्यों की कथनी- करनी का यह द्वैत
सुरसा कि तरह लील रहा है मानवीय संवेदनाओं को /
सच कहो क्या तुमको खुद की रक्ताल्पता ,रुग्णता ,जर्जरता ,शनैः- शनैः
खुद के अन्दर मरते हुए आदमी की वेदना का अहसास नहीं होता ?
हैवानियत में डूब कर भी आदमी होने की लीला कैसे कर लेतो हो लीलाधारी ???
-----श्यामबिहारी पराशर ,ग्वालियर .
खुद के अन्दर मरते हुए आदमी की वेदना का अहसास नहीं होता ?
जवाब देंहटाएंहैवानियत में डूब कर भी आदमी होने की लीला कैसे कर लेतो हो लीलाधारी ???
Bahut khoob!
Bahut sundar rachana!
जवाब देंहटाएंAapka swagat hai!
बहुत उम्दा लेख है। सादुवाद१
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावशाली कविता की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
बहुत अच्छी पोस्ट| धन्यवाद|
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