सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

विज्ञानवेत्ता भी विज्ञानचेता बनें |

विज्ञानवेत्ता या विज्ञानविद सामान्यतः वे लोग कहलाते हैं जो विज्ञान की गहरी जानकारी रखते हैं या विज्ञान के अंतर्गत किसी विषय का विशद अनुप्रयोगात्मक ज्ञान रखते हैं |हालाँकि हर विज्ञानविद को विज्ञान की अपनी समझ को दैनंदिन व्यवहार में अपनाना चाहिए लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं है |जीवन-व्यवहार में हमें इसका उलट ही देखने को ही मिलता है |यह विडम्बना ही तो है कि उपग्रह प्रक्षेपण के पहले उसके निर्माता वैज्ञानिक धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कर अपने मिशन की सफलता की कामना करते हैं |
                                                                                                                 आज फलित ज्योतिष के प्रति सामान्य जन से ज्यादा कहीं डॉक्टर और इंजिनियर आकर्षित हो रहे हैं और उसे शौकिया तौर पर या अनुषंगी व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं |विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इस आशय के विज्ञापन सहज ही देखे जा सकते हैं |एक ऐसा व्यक्ति जो भौतिक विज्ञान या रसायन विज्ञान जैसे विषय में डाक्टरेट किये हो ,बिल्ली के रास्ता काटने पर यों ठिठक जाये मानो किसी ने विस्फोटक सुरंग बिछा रखी हो तो क्या उसे वैज्ञानिक चेतना संपन्न या विज्ञानचेता कहा जा सकता है ?मेरे विचार में कतई नहीं |क्योंकि विज्ञानविद होते हुए भी वह न सिर्फ अंधविश्वासों को ढो रहा है बल्कि उनका पोषण भी कर रहा है |शुभ कार्य आरंभ होने के पहले किसी के छींकने  भर से अज्ञात अनिष्ट की आशंका से लोग विचलित हो जाते हैं |किसी भी तर्क से इसे सही नहीं ठहराया जा सकता है
            विज्ञान प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है इसलिए तर्कसिद्ध ,सत्यापनीय तथ्य ही उसके लिए प्रमाण योग्य हैं |लिहाजा वह किसी भौतिकेतर सत्ता में विश्वास नहीं करता और फलतः मरणोत्तर जीवन को पूरी तरह  से नकारता है |उसका आग्रह तो काल्पनिक स्वर्ग को धरती पर ही प्रतिस्थापित करने का है |विज्ञान के मानने वालों को उसके इस सार को भी आत्मसात करना चाहिए तभी हम सही अर्थों में वैज्ञानिक चेतना संपन्न या विज्ञानचेता बन सकते हैं |
                                    अंधविश्वासों का पोषण करने वाली परम्पराओं या रुढियों को  संस्कृति के नाम पर ढोना उचित नहीं कहा जा सकता |ऐसी कालबाह्य रुढियों के नकार से संस्कृति खतरे में नहीं पड़ जाएगी और न ही हमारा गौरव धूमिल होगा |मनुष्य के लिए बेहतर संसार और समाज का निर्माण करना ही विज्ञान का एकमेव और अंतिम लक्ष्य है |कम-से-कम विज्ञान से जुड़े लोगों को तो तर्कजीवी ,परिपक्व और  वैज्ञानिक चेतना संपन्न होना चाहिए ताकि दूसरों के लिए वे उदहारण बन सकें और हमारा जीवन सुखमय और तर्कसमृद्ध बन सके ||

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

सपने

सपने सभी देखते हैं ,आम भी और खास भी |कुछ खुली आँखों से सपने देखते हैं और कुछ  बंद आँखों से |सपनों की अपनी दुनियां है ,सजीली और नयनाभिराम |महात्मा गाँधी ने भी एक सपना देखा था |एक ऐसे आत्मनिर्भर और शोषणमुक्त भारत का सपना ,जिसमें समाज के निचले पायदान पर खड़े अंतिम व्यक्ति को भी समान महत्व मिलेगा |जिसमें सामाजिक न्याय की प्रतिष्ठा होगी |लेकिन जो हश्र गाँधी का हुआ ,वही उनके सपने के साथ हुआ |उनका गुणानुवाद करने वाले लोगों ने ही उनके  सपने की हत्या कर दी |
                                                                                                                    आम आदमी भी सपने देखते हैं लेकिन उनके सपने उन्हीं की तरह आम होते हैं | वह सिर पर एक छत  ,दो  वक्त की रोटी की आसान जुगाड़ ,बूढी माँ का इलाज ,एक पुरानी या नई बाईसकिल खरीदने जैसे सपने देखता है |जब उनके ये सपने फलित होते हैं तो वे अपना जीवन सफल और धन्य मानते हैं और सपनों के तार-तार होने पर मानो उनकी जिंदगी बिखर जाती है |
                                खास लोगों के सपने खास होते हैं |देश में और विदेश में औद्योगिक साम्राज्य खड़ा करना ,धनकुबेर बनकर विलासिता का जीवन जीना ,किसी कमाऊ क्षेत्र में अपनी नियुक्ति का जुगाड़ ,राजनीतिक क्षत्रप बनकर राज्य सत्ता का निर्बाध सुख भोग -जैसे खास सपने उनकी आँखों में सजते हैं ,जिन्हें वे खुली आँखों से देखते हैं और उन्हें अपने जीवन में फलित करने के लिए प्राणपण से जुट जाते हैं |
                                                                                                                               आम लोग अक्सर बंद आँखों से सपने देखते हैं जबकि खास लोग खुली आँखों से सपने देखते हैं |सपने जब करवटें बदलते हैं या बिखरते हैं तो जीना मुश्किल हो जाता है |सपनो के बिखरने का  दर्द तोड़कर रख देता है |सपने हमारे जीवन में एक आश्वासन की तरह होते हैं जो भले ही झूठे हों लेकिन हमें बहुत संबल देते हैं |कुछ सपने सार्वजनिक जीवन में हलचल मचा देते हैं |इन्हीं में से एक सपना मोदी का है तो दूसरा शोभन सरकार का |इन दिनों सार्वजनिक प्रचार माध्यमों में इन सपनों को जरुरत से ज्यादा स्पेस मिल रहा है |डोंडीया खेड़ा में राजा राव रामबख्स सिंह के खजाने की बात उस इलाके के सभी बुजुर्ग लोगों को पता है |अभिलेखों में भी इस तथ्य का उल्लेख है |अंग्रेज अफसरों ने खजाने का पता लगाने के लिए राजा राव रामबख्स सिंह को कठोर यातनाएं देकर मार डाला लेकिन खजाने का पता हासिल नहीं कर सके |अनुमान है कि खजाना किले में ही कहीं दबा पड़ा है लेकिन उसके वास्तविक स्थान का पता न तो शोभन सरकार को है और न पुराविदों को |सर्वेक्षण के दौरान कोई धातु भूगर्भ में दबी होने के संकेत मिलने पर उन्होंने कुछ स्थलों को चिन्हित किया है ,जहाँ खुदाई जारी है |शोभन सरकार के सुनहले सपने पर दूसरे स्वप्नद्रष्टा मोदी जी ने सवाल उठाया और उसका मजाक उड़ाया |लेकिन जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि शोभन सरकार के लाखों की संख्या में भक्त हैं और उनके सपने की सार्वजनिक तौर पर खिल्ली उड़ाने पर कहीं उनका सपना न बिखर जाये तो उन्होंने इस बात की गंभीरता को समझा और अपना दूत भेजकर उनसे क्षमा याचना की |
                                                   सपने लोगों को गुमराह भी करते हैं जैसाकि हम देख रहे हैं लेकिन ये तो खास लोगों की बात हुई |आम लोग कब खुली आँखों से सपने देखना शुरू करेंगे ??

शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

सलूनो,भुजरिया और चांदमारी

सलूनो ,भुजरिया और चांदमारी के इस त्रिकोण का सामाजिक ,सांस्कृतिक और आर्थिक  महत्व है |सलूनो या रक्षाबंधन का महात्म्य तो सर्वविदित है |इसके आयोजन के उद्देश्य का निरूपण करने वाली अनेक लोक कथाएं प्रचलित हैं ,जिनमें पाठभेद और कथाभेद दोनों मिलता है |लेकिन कलेवर विस्तार के भय से उन सब का वर्णन करना यहाँ अभीष्ट नहीं है |पर उन सभी का सारांश यह है कि अपने प्रियजन की कुशलक्षेम की कामना से उन्हें अभिमंत्रित सूत्र बांधा जाता है ,जो रक्षासूत्र कहलाता है और जो प्रायः बहिनें अपने भाई को बांधतीं हैं |प्रतिदान में भाई भी बहिनों को यथेष्ट दक्षिणा देकर उनकी सुरक्षा का दायित्व ओढ़ता है |इस अवसर पर भुजरिया -जो जौ या गेंहू इत्यादि के नन्हे पौधे होते हैं ,का आदान-प्रदान किया जाता है और उन्हें देवी माँ को अर्पित किया जाता है और अच्छी फसल व धन-धान्य की कामना की जाती है |कुछ लोग इसे मृदा परीक्षण या बीज परीक्षण का आदिम तरीका मानते हैं लेकिन यह वास्तव में एक तांत्रिक अनुष्ठान है जो अच्छी फसल की कामना से लोक देवी को लक्षित कर किया जाता है |जिससे दैवी अनुकम्पा प्राप्त हो और प्राकृतिक प्रकोपों से फसलें संरक्षित रहें |चांदमारी का भी इस पर्व से अनोखा रिश्ता है |इसमें जलाशयों के किनारे स्थानीय लोगों द्वारा युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया जाता है |निशानेबाजी की जाती है |चकरी मेले और अखाड़े आयोजित किये जाते हैं तथा इन सब का उद्देश्य उन जलस्रोतों पर जो  उनके पीने के पानी और फसलों की सिंचाई के प्रमुख स्रोत रहे हैं ,पर प्रतीकात्मक रूप से अपना सामूहिक आधिपत्य जतलाना होता है ताकि कोई ग्रामेतर अन्य व्यक्ति उनकी बिना अनुमति के जलाशयों के जल का उपयोग करने का दुस्साहस न कर सके |आज के परिप्रेक्ष्य में तो यह बात और भी सटीक व प्रासंगिक मालूम होती है |पानी को लेकर आये दिन तलवारें खिंचती हैं और द्वंद्व मचता है ,फिर चाहे यह मामला व्यक्तियों के बीच का हो या राज्यों के बीच का |चूँकि यह पर्व श्रावण मास में याने वर्षा ऋतू में मनाया जाता है इसलिए जल संग्रहण और उसके संरक्षण के महत्व को सहज ही समझा जा सकता है | 

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

मतदाता की जान सांसत में है !

चार राज्यों में चुनावी बिगुल बजने के साथ ही सियासी हलचलों का दौर शुरू हो गया |चुनाव जो लोकतंत्र का महापर्व है,कुछ लोगों के लिए उत्सव जैसा है |चुनाव से जुड़े कारोबारियों के चेहरे खिल गए हैं और जिन  सैंकड़ों लोगों का बिना मेहनत की रोटी का जुगाड़ हो गया है ,उनकी वाछें खिल उठी  हैं |
                                                                                                                 लेकिन हजारों लोग भी हैं जिनकी जान सांसत में है |दबंगों के इस चुनावी सिर फुटव्वल में उन्हें अपनी मुसीबत नजर आ रही है |सभी दबंगों ने अपनों पर दबाव बनाना और बढ़ाना शुरू कर दिया है |उनसे कसमें खिलाई जा रही हैं ,वादे लिए जा रहे हैं और तमामतर अहसान गिना कर उन्हें भुनाने के लिए पूरी तरह से कमर कसी जा रही है |एक-एक वोटर पर इन दबंगों की गृद्ध-दृष्टि है |उनके पास मोहल्लेबार ,वार्डबार ,और जतिबार पूरे निर्वाचन क्षेत्र की विशेष तौर पर तैयार कराई गई मतदाता सूचियाँ हैं |विरोधियों से सहानुभूति रखने वाले मतदाताओं को चिन्हित कर उन्हें घेरा जा रहा है |साम,दाम,दंड ,भेद सभी हथकंडे अपनाये जा रहे हैं |किस शख्स का कितना वजन है ,कौन कितने पैसों में बिक सकता है ,किस की रिश्तेदारी में पैठ लगाकर उन्हें काबू किया जा सकता है इसका विस्तृत आकलन तैयार किया जा रहा है |चारों ओर जासूस तैनात हैं ,जो आम लोगों की न सिर्फ नब्ज टटोल रहे हैं बल्कि उन पर पैनी नजर रखे हुए हैं और उन्हें चौबीसों घंटे सूंघकर उनका रुझान पता करने की कोशिशों में जुटे हैं |
                                                                                                                                         तो अब यह समझने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि आम लोगों की जान सचमुच सांसत में है |वे न खुलकर इन मुद्दों पर बात कर सकते हैं और न आपस में कोई मशविरा कर सकते हैं क्योंकि दीवारों के भी कान होते हैं |बहुत मुमकिन है कि आपके घर में ही कोई जासूस हो जो आपकी दैनंदिन गतिविधियों को नोट कर अपने आका को रिपोर्ट कर रहा हो ?इतना अविश्वास और संशय पहले कभी नहीं था |खुलकर विरोध करने या अपना पक्ष चुनने वालों को उसकी कीमत चुकानी पड़ जाती है |जिसकी भरपाई का आश्वासन वह शख्स देता है ,जिसके पक्ष में वह खड़ा होता है |लेकिन चुनाव जीतने और चुनाव बीतने के बाद भी उनकी नज़रे-इनायत ऐसी ही बनी रहेगी ,इस बात की शंका उस आश्वस्त व्यक्ति के मन में भी घर किये रहती है |किसी को जोतदारी से छुट्टी की धमकी मिलती है तो किसी को खेत की मेंड़ से न निकलने देने की गंभीर चेतावनी |मतदाता इस बात को बखूबी समझने लगा है कि चुनाव वही प्रत्याशी जीतेगा ,जिसका मेनेजमेंट बेहतर होगा |अब जन समर्थन का ज्यादा महत्व नहीं है !क्योंकि यदि  चुनाव जनआकांक्षाओं की वास्तविक अभिव्यक्ति होते तो आज हिन्दुस्तान की तस्वीर कुछ और ही होती | 

भ्रष्टाचार और चुनाव में चोली दामन का रिश्ता है !

भ्रष्टाचार बढ़ रहा यों ,ज्यों सुरसा का विस्तार |
नेताओं की  माया से  भगवान  भी  गया  हार ||
अग्निमुखी,कलियुगी देव सब चट कर जाते हैं |
बड़े  चाव  से  चारा  और  कोयला  खाते   हैं  ||
बेशर्मी  भी  इन  बेशर्मों  से  शरमाती   है   |
हिन्स्रपशु से भी निकृष्ट धनपशु की जाति है ||
चहुंमुखी प्रगति के बावजूद छाई अमावस्या है |
भ्रष्टाचार   बना है  क्योंकि  बड़ी  समस्या   है  ||
जब  चुनाव में  लाखों  रुपये  खर्च  करेंगे  लोग |
खुलकर हो  काले धन का निर्वाचन में उपयोग ||
क्यों फिर भ्रष्टाचार बने ना महाभयानक रोग |
क्योंकि जीतने पर अपनी ही जेब भरेंगे लोग ||
कम  खर्चीले  हों  चुनाव , इसलिए  जरुरी  है |
वरना  भ्रष्टाचार  यहाँ  समझो  मज़बूरी   है ||      
                                         
                                     
                                       
                                           
                                         
                                         
                                               
                                         
                                     
                                               
                                     
                                  

बुधवार, 11 सितंबर 2013

एक सवाल

चालीस-आठ  लाशों  के  ऊँचे  ढेर पर |
कुछ तो बोलो ,इस प्रायोजित अंधेर पर ||
भाजपा, सपा, बसपा  सारे  हैं  मौन   |
है  धुला  दूध  का  बोलो  इनमें  कौन ||
सेंके  सबने  इस  दावानल  में  हाथ  |
है  दिया  आततायी  लोगों  का साथ ||
सबने मिल  रौंदी  भाईचारे की छाती |
कर डाली तहस-नहस गंगा-जमुनी थाती ||
इन घड़ियाली आंसूओं का अब क्या मानी|
पहले की  आगजनी ,फिर डाल रहे पानी  ||
लोगों  का   नेताओं  पर   नहीं भरोसा है  |
सब ने दंगों के लिए इन्हीं  को कोसा है ||
ये क्या पीड़ित लोगों को न्याय दिलाएंगे |
आधी  सहायता तो ये  ही  खा  जायेंगे ||

          श्रीश राकेश जैन |

दंगों के विरोध में

नफरत की विषबेल ये ,यहाँ किसने आकर बोई |
लहू बहा है किसका ,देख बता सकता क्या कोई ?
छोटी-छोटी बातों को ,फिर तूल दे रहे लोग    |
यह सोची-समझी साजिश है,नहीं महज संयोग ||
सिर पर देख चुनाव ,सियासी लोग चल गए चाल |
जाति,धर्म की चिंगारी ,दी जानबूझ कर डाल  ||
कितने मासूमों ने अपने अभिभावक खोये हैं ?
कितने बूढ़े बापों ने  , बेटों के शव ढोए हैं   ??
जोह रहे हैं कितने ही परिजन अपनों की राह ?
लगा दरकने उनके भी अब चेहरे का उत्साह ||
बेकसूर लोगों की ,  जब भी हत्या होती है   |
धरती माता पीट-पीट कर छाती रोती है  | |
हिन्दू हों या मुसलमान ,हैं भारत माँ के लाल |
मचा हुआ है जाति धर्म पर फिर क्यों यहाँ बवाल ||
इन टूटे लोगों को फिर से खड़ा करेगा कौन ?
किंकर्तव्यविमूढ़ राज्य है इस सवाल पर मौन ||
                               श्रीश राकेश जैन |