सोमवार, 30 जुलाई 2018

अनेकांत- एक टिप्पणी

हर वस्तु अपनी संरचना में जटिल और संश्लिष्ट होती है क्योंकि उसके अनेक पक्ष और आयाम होते हैं |चूँकि हमारी दृष्टि और भाषा दोनों की एक सीमा है इसलिए एक समय में हम किसी वस्तु का एक ही आयाम या पक्ष ग्रहण कर पाते हैं क्योंकि जब हम उसका एक आयाम पकड़ते हैं तो दूसरा छूट जाता है और दूसरा पकड़ने पर पहला छिटक जाता है ,फलतः उसे समग्र रूप से एक साथ एक समय में ग्रहण कर पाना संभव नहीं होता |इसलिए एक आयाम या पक्ष पर आधारित अर्थ-निरूपण हमेशा अपूर्ण और एकांगी होता है |यह एकांगी निरूपण ही एकांत कहलाता है क्योंकि किसी वस्तु का उसके द्रष्टा ने जो पक्ष देखा या जाना होता है उसी का वह निरूपण करता है जो प्रायः भिन्न-भिन्न होता है और उस वस्तु के खंडित स्वरूप का निदर्शन कराता है |यह एकांत निरूपण ही विरोधों को जन्म देता है जो अनेक विग्रहों का कारण बनता है |इसीलिए विरोधों का शमन करने और वस्तु स्वरूप के सम्यक निदर्शन के लिए जैन मनीषियों ने अनेकांत का प्ररूपण किया |अनेकांत की अवधारणा समग्रता की अवधारणा है जो असीम सत्य के सीमित व सापेक्ष दृष्टि से किये गए निरूपणों के संश्लेषण का तार्किक फलन है ||

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