नंदन-वन !
यों है कहने को नंदन वन
पल्लवित वृक्ष दो चार ,शेष
भूखे नंगे बच्चों-से क्षुप |
श्रीहीन,दीन बालाओं-सी
मुरझायीं बेलें भी हैं कुछ |
जिस ओर विहंग-दृष्टी डालो
अधसूखे ठूंठ हजार खड़े |
उपवन, उद्यान कहो कुछ भी
दर्शन थोड़े,बस नाम बड़े |
यों है कहने को नंदन !
------श्रीश राकेश
संवेदनशील रचना सत्य को उजागर करती हुई
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