तुम साकार आस्था हो,अभिनंदनीय हो
धरती के बेटे किसान तुम वंदनीय हो/
बीज नहीं तुम खेतों में जीवन बोते हो
भैरव श्रम से कभी नहीं विचलित होते हो/
वज्र कठोर,पुष्प से कोमल हो स्वभाव से
हंसकर विष भी पी जाते हो सहज भाव से/
तुमने इस जग पर कितना उपकार किया है
बीहड़ बंजर धरती का श्रृंगार किया है/
हरियाली के स्वर में जब धरती गाती है
देख तुम्हारा सृजन प्रकृति भी इठलाती है/
अपर अन्नदाता का जिसको मिला मान है
निर्विवाद वह धरती का बेटा किसान है//
धरती के बेटे किसान तुम वंदनीय हो/
बीज नहीं तुम खेतों में जीवन बोते हो
भैरव श्रम से कभी नहीं विचलित होते हो/
वज्र कठोर,पुष्प से कोमल हो स्वभाव से
हंसकर विष भी पी जाते हो सहज भाव से/
तुमने इस जग पर कितना उपकार किया है
बीहड़ बंजर धरती का श्रृंगार किया है/
हरियाली के स्वर में जब धरती गाती है
देख तुम्हारा सृजन प्रकृति भी इठलाती है/
अपर अन्नदाता का जिसको मिला मान है
निर्विवाद वह धरती का बेटा किसान है//
---------------------श्रीश राकेश
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