शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

मतदाता की जान सांसत में है !

चार राज्यों में चुनावी बिगुल बजने के साथ ही सियासी हलचलों का दौर शुरू हो गया |चुनाव जो लोकतंत्र का महापर्व है,कुछ लोगों के लिए उत्सव जैसा है |चुनाव से जुड़े कारोबारियों के चेहरे खिल गए हैं और जिन  सैंकड़ों लोगों का बिना मेहनत की रोटी का जुगाड़ हो गया है ,उनकी वाछें खिल उठी  हैं |
                                                                                                                 लेकिन हजारों लोग भी हैं जिनकी जान सांसत में है |दबंगों के इस चुनावी सिर फुटव्वल में उन्हें अपनी मुसीबत नजर आ रही है |सभी दबंगों ने अपनों पर दबाव बनाना और बढ़ाना शुरू कर दिया है |उनसे कसमें खिलाई जा रही हैं ,वादे लिए जा रहे हैं और तमामतर अहसान गिना कर उन्हें भुनाने के लिए पूरी तरह से कमर कसी जा रही है |एक-एक वोटर पर इन दबंगों की गृद्ध-दृष्टि है |उनके पास मोहल्लेबार ,वार्डबार ,और जतिबार पूरे निर्वाचन क्षेत्र की विशेष तौर पर तैयार कराई गई मतदाता सूचियाँ हैं |विरोधियों से सहानुभूति रखने वाले मतदाताओं को चिन्हित कर उन्हें घेरा जा रहा है |साम,दाम,दंड ,भेद सभी हथकंडे अपनाये जा रहे हैं |किस शख्स का कितना वजन है ,कौन कितने पैसों में बिक सकता है ,किस की रिश्तेदारी में पैठ लगाकर उन्हें काबू किया जा सकता है इसका विस्तृत आकलन तैयार किया जा रहा है |चारों ओर जासूस तैनात हैं ,जो आम लोगों की न सिर्फ नब्ज टटोल रहे हैं बल्कि उन पर पैनी नजर रखे हुए हैं और उन्हें चौबीसों घंटे सूंघकर उनका रुझान पता करने की कोशिशों में जुटे हैं |
                                                                                                                                         तो अब यह समझने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि आम लोगों की जान सचमुच सांसत में है |वे न खुलकर इन मुद्दों पर बात कर सकते हैं और न आपस में कोई मशविरा कर सकते हैं क्योंकि दीवारों के भी कान होते हैं |बहुत मुमकिन है कि आपके घर में ही कोई जासूस हो जो आपकी दैनंदिन गतिविधियों को नोट कर अपने आका को रिपोर्ट कर रहा हो ?इतना अविश्वास और संशय पहले कभी नहीं था |खुलकर विरोध करने या अपना पक्ष चुनने वालों को उसकी कीमत चुकानी पड़ जाती है |जिसकी भरपाई का आश्वासन वह शख्स देता है ,जिसके पक्ष में वह खड़ा होता है |लेकिन चुनाव जीतने और चुनाव बीतने के बाद भी उनकी नज़रे-इनायत ऐसी ही बनी रहेगी ,इस बात की शंका उस आश्वस्त व्यक्ति के मन में भी घर किये रहती है |किसी को जोतदारी से छुट्टी की धमकी मिलती है तो किसी को खेत की मेंड़ से न निकलने देने की गंभीर चेतावनी |मतदाता इस बात को बखूबी समझने लगा है कि चुनाव वही प्रत्याशी जीतेगा ,जिसका मेनेजमेंट बेहतर होगा |अब जन समर्थन का ज्यादा महत्व नहीं है !क्योंकि यदि  चुनाव जनआकांक्षाओं की वास्तविक अभिव्यक्ति होते तो आज हिन्दुस्तान की तस्वीर कुछ और ही होती | 

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