सलूनो ,भुजरिया और चांदमारी के इस त्रिकोण का सामाजिक ,सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व है |सलूनो या रक्षाबंधन का महात्म्य तो सर्वविदित है |इसके आयोजन के उद्देश्य का निरूपण करने वाली अनेक लोक कथाएं प्रचलित हैं ,जिनमें पाठभेद और कथाभेद दोनों मिलता है |लेकिन कलेवर विस्तार के भय से उन सब का वर्णन करना यहाँ अभीष्ट नहीं है |पर उन सभी का सारांश यह है कि अपने प्रियजन की कुशलक्षेम की कामना से उन्हें अभिमंत्रित सूत्र बांधा जाता है ,जो रक्षासूत्र कहलाता है और जो प्रायः बहिनें अपने भाई को बांधतीं हैं |प्रतिदान में भाई भी बहिनों को यथेष्ट दक्षिणा देकर उनकी सुरक्षा का दायित्व ओढ़ता है |इस अवसर पर भुजरिया -जो जौ या गेंहू इत्यादि के नन्हे पौधे होते हैं ,का आदान-प्रदान किया जाता है और उन्हें देवी माँ को अर्पित किया जाता है और अच्छी फसल व धन-धान्य की कामना की जाती है |कुछ लोग इसे मृदा परीक्षण या बीज परीक्षण का आदिम तरीका मानते हैं लेकिन यह वास्तव में एक तांत्रिक अनुष्ठान है जो अच्छी फसल की कामना से लोक देवी को लक्षित कर किया जाता है |जिससे दैवी अनुकम्पा प्राप्त हो और प्राकृतिक प्रकोपों से फसलें संरक्षित रहें |चांदमारी का भी इस पर्व से अनोखा रिश्ता है |इसमें जलाशयों के किनारे स्थानीय लोगों द्वारा युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया जाता है |निशानेबाजी की जाती है |चकरी मेले और अखाड़े आयोजित किये जाते हैं तथा इन सब का उद्देश्य उन जलस्रोतों पर जो उनके पीने के पानी और फसलों की सिंचाई के प्रमुख स्रोत रहे हैं ,पर प्रतीकात्मक रूप से अपना सामूहिक आधिपत्य जतलाना होता है ताकि कोई ग्रामेतर अन्य व्यक्ति उनकी बिना अनुमति के जलाशयों के जल का उपयोग करने का दुस्साहस न कर सके |आज के परिप्रेक्ष्य में तो यह बात और भी सटीक व प्रासंगिक मालूम होती है |पानी को लेकर आये दिन तलवारें खिंचती हैं और द्वंद्व मचता है ,फिर चाहे यह मामला व्यक्तियों के बीच का हो या राज्यों के बीच का |चूँकि यह पर्व श्रावण मास में याने वर्षा ऋतू में मनाया जाता है इसलिए जल संग्रहण और उसके संरक्षण के महत्व को सहज ही समझा जा सकता है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें