विज्ञानवेत्ता या विज्ञानविद सामान्यतः वे लोग कहलाते हैं जो विज्ञान की गहरी जानकारी रखते हैं या विज्ञान के अंतर्गत किसी विषय का विशद अनुप्रयोगात्मक ज्ञान रखते हैं |हालाँकि हर विज्ञानविद को विज्ञान की अपनी समझ को दैनंदिन व्यवहार में अपनाना चाहिए लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं है |जीवन-व्यवहार में हमें इसका उलट ही देखने को ही मिलता है |यह विडम्बना ही तो है कि उपग्रह प्रक्षेपण के पहले उसके निर्माता वैज्ञानिक धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कर अपने मिशन की सफलता की कामना करते हैं |
आज फलित ज्योतिष के प्रति सामान्य जन से ज्यादा कहीं डॉक्टर और इंजिनियर आकर्षित हो रहे हैं और उसे शौकिया तौर पर या अनुषंगी व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं |विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इस आशय के विज्ञापन सहज ही देखे जा सकते हैं |एक ऐसा व्यक्ति जो भौतिक विज्ञान या रसायन विज्ञान जैसे विषय में डाक्टरेट किये हो ,बिल्ली के रास्ता काटने पर यों ठिठक जाये मानो किसी ने विस्फोटक सुरंग बिछा रखी हो तो क्या उसे वैज्ञानिक चेतना संपन्न या विज्ञानचेता कहा जा सकता है ?मेरे विचार में कतई नहीं |क्योंकि विज्ञानविद होते हुए भी वह न सिर्फ अंधविश्वासों को ढो रहा है बल्कि उनका पोषण भी कर रहा है |शुभ कार्य आरंभ होने के पहले किसी के छींकने भर से अज्ञात अनिष्ट की आशंका से लोग विचलित हो जाते हैं |किसी भी तर्क से इसे सही नहीं ठहराया जा सकता है
विज्ञान प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है इसलिए तर्कसिद्ध ,सत्यापनीय तथ्य ही उसके लिए प्रमाण योग्य हैं |लिहाजा वह किसी भौतिकेतर सत्ता में विश्वास नहीं करता और फलतः मरणोत्तर जीवन को पूरी तरह से नकारता है |उसका आग्रह तो काल्पनिक स्वर्ग को धरती पर ही प्रतिस्थापित करने का है |विज्ञान के मानने वालों को उसके इस सार को भी आत्मसात करना चाहिए तभी हम सही अर्थों में वैज्ञानिक चेतना संपन्न या विज्ञानचेता बन सकते हैं |
अंधविश्वासों का पोषण करने वाली परम्पराओं या रुढियों को संस्कृति के नाम पर ढोना उचित नहीं कहा जा सकता |ऐसी कालबाह्य रुढियों के नकार से संस्कृति खतरे में नहीं पड़ जाएगी और न ही हमारा गौरव धूमिल होगा |मनुष्य के लिए बेहतर संसार और समाज का निर्माण करना ही विज्ञान का एकमेव और अंतिम लक्ष्य है |कम-से-कम विज्ञान से जुड़े लोगों को तो तर्कजीवी ,परिपक्व और वैज्ञानिक चेतना संपन्न होना चाहिए ताकि दूसरों के लिए वे उदहारण बन सकें और हमारा जीवन सुखमय और तर्कसमृद्ध बन सके ||
आज फलित ज्योतिष के प्रति सामान्य जन से ज्यादा कहीं डॉक्टर और इंजिनियर आकर्षित हो रहे हैं और उसे शौकिया तौर पर या अनुषंगी व्यवसाय के रूप में अपना रहे हैं |विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इस आशय के विज्ञापन सहज ही देखे जा सकते हैं |एक ऐसा व्यक्ति जो भौतिक विज्ञान या रसायन विज्ञान जैसे विषय में डाक्टरेट किये हो ,बिल्ली के रास्ता काटने पर यों ठिठक जाये मानो किसी ने विस्फोटक सुरंग बिछा रखी हो तो क्या उसे वैज्ञानिक चेतना संपन्न या विज्ञानचेता कहा जा सकता है ?मेरे विचार में कतई नहीं |क्योंकि विज्ञानविद होते हुए भी वह न सिर्फ अंधविश्वासों को ढो रहा है बल्कि उनका पोषण भी कर रहा है |शुभ कार्य आरंभ होने के पहले किसी के छींकने भर से अज्ञात अनिष्ट की आशंका से लोग विचलित हो जाते हैं |किसी भी तर्क से इसे सही नहीं ठहराया जा सकता है
विज्ञान प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है इसलिए तर्कसिद्ध ,सत्यापनीय तथ्य ही उसके लिए प्रमाण योग्य हैं |लिहाजा वह किसी भौतिकेतर सत्ता में विश्वास नहीं करता और फलतः मरणोत्तर जीवन को पूरी तरह से नकारता है |उसका आग्रह तो काल्पनिक स्वर्ग को धरती पर ही प्रतिस्थापित करने का है |विज्ञान के मानने वालों को उसके इस सार को भी आत्मसात करना चाहिए तभी हम सही अर्थों में वैज्ञानिक चेतना संपन्न या विज्ञानचेता बन सकते हैं |
अंधविश्वासों का पोषण करने वाली परम्पराओं या रुढियों को संस्कृति के नाम पर ढोना उचित नहीं कहा जा सकता |ऐसी कालबाह्य रुढियों के नकार से संस्कृति खतरे में नहीं पड़ जाएगी और न ही हमारा गौरव धूमिल होगा |मनुष्य के लिए बेहतर संसार और समाज का निर्माण करना ही विज्ञान का एकमेव और अंतिम लक्ष्य है |कम-से-कम विज्ञान से जुड़े लोगों को तो तर्कजीवी ,परिपक्व और वैज्ञानिक चेतना संपन्न होना चाहिए ताकि दूसरों के लिए वे उदहारण बन सकें और हमारा जीवन सुखमय और तर्कसमृद्ध बन सके ||