शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

भूख की आग

क्या जाने वह ,भला भूख की आग 
कभी भाग्य का छल कर ,कभी बाहुबल से 
हड़पा हो जिसने औरों का भाग |
यह नहीं विधाता का कोई अभिशाप ,दंड 
जिंदा  शैतानों के हाथों का खेल है ;
यह है  अमोघ उपकार सेठ ,श्रीमंतों का 
उनकी रोपी, पोषी,रक्षित विषवेल है |
शस्त्रों,शास्त्रों के बल पर न्यायोचित ठहरा 
उत्पीड़न को दैवी-विधान कह भरमाया ;
दोनों हाथों में लड्डू ले दानी बनकर 
जिन्हने फैलाई फिर  उदारता की माया |
व्रत, अनशन चाहे भले रहे हों अनुष्ठान ;
पर, भूख एक पीड़ादायी सच्चाई है ;
जो लोग धकेले गए हाशिये पर उनके 
नंगे पाँवों में गहरी फटी बिबाई है |
औरों से कर उपवासों की पैरोकारी 
खुद छेड़ रहे जो भरे पेट का राग  ;
सच क्या जाने वे भला भूख की आग  ||
       ...श्रीश राकेश 

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

अतीत के झरोखे से :लहार

लहार के विषय में किम्वदंती है यह स्थान महाभारत में वर्णित लाक्षागृह रहा है तथा लाख की तीव्र गंध वातावरण में व्याप्त रहने के कारण यह कालांतर में लहार नाम से जाना गया क्योंकि लहार शब्द का अर्थ ही स्थानीय बोली में तीव्र गंध है और इस अर्थ में यह शब्द यहाँ आज भी प्रचलित है लेकिन लहार को महाभारत कालीन लाक्षागृह मानने के दावे के समर्थन में इस जनविश्वास के अलावा कोई ठोस पुरातात्विक या ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है |अलबत्ता वह स्थान जो गढ़ी के नाम से जाना जाता है और जहाँ पर कथित लाक्षागृह होने का विश्वास किया जाता है ,इस बारे में विस्तृत अध्ययन और शोध की अपेक्षा रखता है जिससे आधिकारिक रूप से यह तय हो सके कि इस विशाल टीले पर मौजूद भग्नावशेष जो अब नाममात्र को ही बचे हैं ,किस राजवंश और कालखंड से सम्बंधित है |लाक्षागृह की अवधारणा के समर्थन में गढ़ी  पर मौजूद जिस सुरंग को ,जो अब नष्टप्राय है ,एक प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है ,उससे भी गढ़ी पर लाक्षागृह होने के तथ्य का प्रथमदृष्टया समर्थन नहीं होता क्योंकि प्रायः सभी दुर्गों और गढ़ियों पर इस तरह के गुप्त मार्ग पाए जाते हैं |फिर भी इस स्थूल सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि अतीत में यहाँ भीषण अग्निकांड हुआ होगा ,जो चाहे मानवीय भूल का परिणाम रहा हो या किसी की शत्रुतापूर्ण कार्यवाही ,क्योंकि लहार शब्द में  निहित व्यंजना और गढ़ी के आसपास के क्षेत्र में चार- पांच मीटर गहरी खुदाई करने पर राख का पाया जाना इसी तथ्य को स्थापित करता है |
       पुरानी बस्ती लहार तक़रीबन ढाई सौ साल पहले कारे-कीट नामक स्थान पर ,वहां बसी हुई थी ,जो वर्तमान में विद्युत् उपकेन्द्र के उत्तरी दिशा में स्थित थी |वहां खुदाई के दौरान आज भी जहाँ -तहां घड़े ,खप्पर व अन्य घरेलू उपकरण प्राप्त होते हैं ,जो वहां बस्ती होने का प्रमाण हैं |
     ग्वालियर रियासत के समय में यह क्षेत्र नमक और नील के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा है |इस तथ्य का उल्लेख उस समय यहाँ प्रचलित भूगोल की पुस्तकों में है |यहाँ स्थित तालाब के उत्तरी किनारे पर इन भट्ठियों के अवशेष कुछ दशक पहले तक मौजूद रहें हैं |समीपस्थ ग्राम मसेरन में नील का निर्माण होता था |बहुतों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज तिलहन और गेंहू ,चना जैसे प्रमुख खाद्यान्नों से समृद्ध इस क्षेत्र में कभी गेंहू के दर्शन भी दुर्लभ थे और यहाँ के लोग गेंहू को धार्मिक अनुष्ठानों के लिए पूजामाई (पूजा की सामग्री )के रूप में संरक्षित करके रखते थे |कृषि के प्रसंग में एक जानने योग्य तथ्य यह है कि कभी यहाँ कपास का विपुल उत्पादन होता था ,लेकिन अब यहाँ कपास की खेती नहीं होती |
        पाँच दशक पहले यहाँ परिवहन की स्थिति बहुत दयनीय थी |यात्रियों को लहार से भिंड तक की यात्रा डाक ले जाने वाले इक्के (ताँगा) की मदद से करनी पड़ती थी और एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति के चलते एक सप्ताह पहले इक्के वाले को पेशगी भाड़ा देना पड़ता था |भिंड से आगे का सफ़र छुक-छुक गाड़ी में बैठ कर तय होता था ,पर ज्यादातर लोग बैलगाड़ियों से यात्रा करते थे |
         माँ मंगला के नाम से लोक विश्रुत काले पाषाण में उत्कीर्णित प्रतिमा ,जिसकी यहाँ जनमानस में एक देवी के रूप में मान्यता है ,बाईसवें जैन तीर्थंकर नेमिनाथ की एक दुर्लभ प्रतिमा है जिस पर हस्ती युगल कलशाभिषेक कर रहा है |यह प्रतिमा ई. 1160 में इन्दुरखी नरेश इन्द्रदेव को एक स्वप्नादेश से भूगर्भ से प्राप्त हुई बताई जाती है |इंदुरखी नरेश ने इस चमत्कारी प्रतिमा को उसके प्राकट्य -स्थल पर ही चबूतरा बनवाकर प्रतिष्ठापित करा दिया था |कालांतर में भगवंत सिंह गौर ने ई .1653 में इस स्थान पर मठ शैली में मंदिर का निर्माण कराया |ई . 1966 में स्थानीय जनता के सहयोग से इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ ,जो आज यहाँ भव्य रूप में विद्यमान है |सन 1956 में समीपस्थ ग्राम अजनार में जैन तीर्थंकर विमलनाथ की प्रतिमा एक मकान की नींव खोदते समय प्राप्त हुई थी ,जो आज रौन के जिनालय में राखी हुई है |इस क्षेत्र में जैन प्रतिमाओं का पाया जाना अतीत में यहाँ जैन बस्ती होने का एक पुष्ट संकेत है |
         भाटनताल के नजदीक यहाँ जो श्मशान घाट था वह टीलेनुमा ऊँचे स्थान पर बना हुआ था |दरअसल वहां कभी भाट लोगों की बस्ती हुआ करती थी |भाटनताल नामक ताल भी भाट लोगों का बनवाया हुआ है क्योंकि  इसके  नाम से ही यह व्यंजित होता है|नजदीक में बसा भटपुरा गाँव भी भाट समुदाय के लोगों के समृद्ध अतीत की स्मृति आज भी अपने नाम के साथ संजोये हुए है |दस्यु गतिविधियों के लिए कभी कुख्यात रहे इस क्षेत्र में अनेक विद्वान् ,मनस्वी ,और शूरवीर जन्में हैं |यहाँ के लोग सेना की सेवा आज भी सर्वोच्च वरीयता देते हैं |यहाँ के असंख्य रणबांकुरों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राण उत्सर्ग किये हैं |अपने अतीत की धुंधली स्मृतियों को समेटे इस नगर का वर्तमान समृद्ध है और भविष्य निश्चय ही स्वर्णिम |
            श्रीश राकेश  

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

कामना

आधार बना सहजीवन को ,
निज अनुशासन में बद्ध रहें /
कर्तव्यों के परिपालन में ,
नित सजग और सन्नद्ध रहें /
वंदन उनका, जिन्हने जग को
सामाजिक न्याय सिखाया है /
कथनी- करनी में भेद न कर ,
भद्रोचित मार्ग दिखाया है /
जो मूल्य मील के पत्थर हैं ,
उनका जीवन में वरण करें /
वैज्ञानिक सोच-समझ रक्खें ,
आदर्शोन्मुख आचरण करें //
---------श्रीश राकेश