मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

बाराती :एक व्यंग

बाराती का नाम जेहन में आते ही शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाती है |बाराती की अपनी ही निराली शान होती है |जैसे वसंत ऋतू में युवा-बूढ़े सबकी आँखों में एक गुलाबी खुमार होता है और मन में उल्लास की नदी अपने तटों को तोड़ती बहती है वैसी ही मनोदशा एक बाराती की होती है |उसकी शान और ठाठबाट काबिलेगौर होते हैं |जनवासे की चाल का मुहावरा तो मशहूर ही है | गजगामिनी गति से चलते ,ज़माने भर की ऐंठ को अपने में समेटे बाराती को देखना एक अनूठे अनुभव से कम नहीं होता |
                                                                                          घर में बालों में कडुआ तेल मलने वाले लोग बरातों में हेयर केयर तेल की मांग करते दिखते हैं |चढ़ाई के लिए तैयार होते वक्त अपने बदन पर दोस्त के डिओ को लोग ऐसे निचोड़ते हैं कि बेचारा डिओ भी शरमा जाता है | वे मई जून की गरमी में भी कोट पहनने का मौका नहीं चूकते | भले ही  मौसम की वजह से असहज हो जायें  लेकिन फिर वे कोट पहने भी कब ? आखिर अपनी शादी के कोट का उपयोग तो करना ही है |
                                                           इन दिनों शादियों में बुफे का प्रचलन ज्यादा बढ़ रहा है | बुफे में स्टाल पर सजी मेलामाईन की प्लेटों के साथ रखे पेपर नेपकिन को लोग उठा तो लेते हैं लेकिन कहीं वह गन्दा या ख़राब न हो इसका पूरा ख्याल रखते हैं और डस्टबिन में जूठी प्लेट रखते वक्त उस पेपर नेपकिन को भी 'ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया ' की तर्ज पर उसमें डाल देते हैं |
                                                                                    'मालेमुफ्त दिले बेरहम' को सार्थक करते हुए कुछ बाराती खाली प्लेट हाथ में लेकर पहले सभी स्टालों का निरीक्षण करते हैं और फिर पसंदीदा व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हुए ,घूम-घूम कर बतियाते हुए या यहाँ वहाँ बैठकर किश्तों में और इत्मीनान से खाना खाने का विकल्प चुनते है | महिलायें अक्सर चाट के स्टालों के इर्दगिर्द ही  जुटीं नज़र आती हैं | इन स्टालों तक किसी अन्य का पहुँचना ,राशन की दुकान से राशन लेने से कम  दुष्कर नहीं होता | इसलिए असुविधा और मारामारी से बचने के लिए कई लोग अपनी प्लेट में एकबारगी इतना सारा खाना रख लेते हैं कि उनकी प्लेट देखकर अन्नकूट की पूजा की थाली का भ्रम होता है | ऐसे नज़रे भी देखने को मिलते हैं कि पान की गिलोरी चबाते बाराती को जब गरम दूध का कड़ाह नज़र आता है तो वह पान थूककर दूध का लुत्फ़ उठाने लगता है |छक कर  खाने के बाद जनवासे में आराम करते बारातियों के उथल-पुथल मचाते पेट से जब मीथेन और हाइड्रोजन रिलीज होती है तो वहां का मंजर वर्णनातीत होता है |

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