सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

ऐसी दिलदारी प्रणम्य है



दौलतमंद लोग दिलदार भी हों ऐसा कतई जरुरी नहीं है ,लेकिन असली दौलतमंद वही होते हैं जिनके पास दिल की दौलत होती है |क्योंकि दौलत तो तिकड़म करके भी हासिल हो सकती है लेकिन दिलदारी संस्कारों से ही मिलती है |दौलत यों तो हरेक की चाहत और जरुरत है लेकिन दौलतमंदों में दौलत की ख्वाहिश कुछ ज्यादा ही होती है और उनकी यह चाहत 'मर्ज बढ़ता गया ,ज्यों-ज्यों दवा की ' की तर्ज पर बढ़ती ही जाती है |और मौका जब बेटे के विवाह का हो तब तो उनके अरमान ही मचल उठते हैं |वे अपने बेटे के जन्म ,लालन-पालन ,पढाई-लिखाई और शादी पर होने वाले प्रत्याशित खर्च की पूरी भरपाई करने को छटपटा उठते हैं | उनका ज़ोर होने वाली वधू से ज्यादा मिलने वाले दहेज़ पर होता है |उनके लिए वधू के मामले में तो उन्नीस-बीस चल सकता है लेकिन दहेज़ के मामले में कतई नहीं |मानो विवाह का मकसद  वधू  लाना  न होकर ,दहेज़ हासिल करना रह गया हो  |
                     लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जो इन सब बातों को झुठलाते हुए सुखद उदाहरण प्रस्तुत करते हैं |मेरे एक अधिवक्ता मित्र की पुत्री का विवाह एक हाई-प्रोफाइल एन.आर.आई. के साथ हुआ है |इस विवाह  पर अविश्विसनीय रूप से मात्र एक लाख रूपये व्यय हुए |अमेरिका में शिक्षित उनका दामाद नाईजीरिया में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और उसके सगे सम्बन्धी भारत में महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ हैं | मेरे एक अन्य पत्रकार मित्र की पुत्री का विवाह फौजी पृष्ठभूमि वाले एक हाई-प्रोफाइल कश्मीरी कौल परिवार में हुआ है |उनका दामाद भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल है | पूरा परिवार अत्यंत भद्र है |इस विवाह में भी अविश्वसनीय रूप से लगभग एक लाख रूपये व्यय हुए | दोनों ही प्रकरणों में दहेज़ का कोई लेनदेन नहीं हुआ | क्योंकि वर पक्ष के लोगों ने कन्या पक्ष की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए किसी भी प्रकार के लेनदेन से इंकार कर दिया था और सुशील,सुन्दर व सुशिक्षित वधू  पर अपना फोकस रखा | ऐसे उदाहरण विरल भले हों लेकिन रेगिस्तान में किसी मीठे पानी के चश्मे की तरह राहत  देने वाले होते हैं | ऐसी दिलदारी अनुकरणीय और प्रणम्य है |हम में से कई लोग जाने अनजाने में दहेज़ का महिमामंडन कर उसे प्रछन्न प्रोत्साहन देते हैं जो नितांत गलत है | अमीरों द्वारा किया गया वैभव-प्रदर्शन उदहारण योग्य नहीं हो सकता | उनकी तो  सिर्फ सादगी ही उदाहरण योग्य होती है |अमीरों द्वारा वैभव-प्रदर्शन तो सामान्य बात है लेकिन उनका सादगी का निर्वाह उल्लेख्य होता है क्योंकि 'महाजनो येन गतः स पन्थः' ||

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

बाराती :एक व्यंग

बाराती का नाम जेहन में आते ही शरीर में सिहरन-सी दौड़ जाती है |बाराती की अपनी ही निराली शान होती है |जैसे वसंत ऋतू में युवा-बूढ़े सबकी आँखों में एक गुलाबी खुमार होता है और मन में उल्लास की नदी अपने तटों को तोड़ती बहती है वैसी ही मनोदशा एक बाराती की होती है |उसकी शान और ठाठबाट काबिलेगौर होते हैं |जनवासे की चाल का मुहावरा तो मशहूर ही है | गजगामिनी गति से चलते ,ज़माने भर की ऐंठ को अपने में समेटे बाराती को देखना एक अनूठे अनुभव से कम नहीं होता |
                                                                                          घर में बालों में कडुआ तेल मलने वाले लोग बरातों में हेयर केयर तेल की मांग करते दिखते हैं |चढ़ाई के लिए तैयार होते वक्त अपने बदन पर दोस्त के डिओ को लोग ऐसे निचोड़ते हैं कि बेचारा डिओ भी शरमा जाता है | वे मई जून की गरमी में भी कोट पहनने का मौका नहीं चूकते | भले ही  मौसम की वजह से असहज हो जायें  लेकिन फिर वे कोट पहने भी कब ? आखिर अपनी शादी के कोट का उपयोग तो करना ही है |
                                                           इन दिनों शादियों में बुफे का प्रचलन ज्यादा बढ़ रहा है | बुफे में स्टाल पर सजी मेलामाईन की प्लेटों के साथ रखे पेपर नेपकिन को लोग उठा तो लेते हैं लेकिन कहीं वह गन्दा या ख़राब न हो इसका पूरा ख्याल रखते हैं और डस्टबिन में जूठी प्लेट रखते वक्त उस पेपर नेपकिन को भी 'ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया ' की तर्ज पर उसमें डाल देते हैं |
                                                                                    'मालेमुफ्त दिले बेरहम' को सार्थक करते हुए कुछ बाराती खाली प्लेट हाथ में लेकर पहले सभी स्टालों का निरीक्षण करते हैं और फिर पसंदीदा व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हुए ,घूम-घूम कर बतियाते हुए या यहाँ वहाँ बैठकर किश्तों में और इत्मीनान से खाना खाने का विकल्प चुनते है | महिलायें अक्सर चाट के स्टालों के इर्दगिर्द ही  जुटीं नज़र आती हैं | इन स्टालों तक किसी अन्य का पहुँचना ,राशन की दुकान से राशन लेने से कम  दुष्कर नहीं होता | इसलिए असुविधा और मारामारी से बचने के लिए कई लोग अपनी प्लेट में एकबारगी इतना सारा खाना रख लेते हैं कि उनकी प्लेट देखकर अन्नकूट की पूजा की थाली का भ्रम होता है | ऐसे नज़रे भी देखने को मिलते हैं कि पान की गिलोरी चबाते बाराती को जब गरम दूध का कड़ाह नज़र आता है तो वह पान थूककर दूध का लुत्फ़ उठाने लगता है |छक कर  खाने के बाद जनवासे में आराम करते बारातियों के उथल-पुथल मचाते पेट से जब मीथेन और हाइड्रोजन रिलीज होती है तो वहां का मंजर वर्णनातीत होता है |