दौलतमंद लोग दिलदार भी हों ऐसा कतई जरुरी नहीं है ,लेकिन असली दौलतमंद वही होते हैं जिनके पास दिल की दौलत होती है |क्योंकि दौलत तो तिकड़म करके भी हासिल हो सकती है लेकिन दिलदारी संस्कारों से ही मिलती है |दौलत यों तो हरेक की चाहत और जरुरत है लेकिन दौलतमंदों में दौलत की ख्वाहिश कुछ ज्यादा ही होती है और उनकी यह चाहत 'मर्ज बढ़ता गया ,ज्यों-ज्यों दवा की ' की तर्ज पर बढ़ती ही जाती है |और मौका जब बेटे के विवाह का हो तब तो उनके अरमान ही मचल उठते हैं |वे अपने बेटे के जन्म ,लालन-पालन ,पढाई-लिखाई और शादी पर होने वाले प्रत्याशित खर्च की पूरी भरपाई करने को छटपटा उठते हैं | उनका ज़ोर होने वाली वधू से ज्यादा मिलने वाले दहेज़ पर होता है |उनके लिए वधू के मामले में तो उन्नीस-बीस चल सकता है लेकिन दहेज़ के मामले में कतई नहीं |मानो विवाह का मकसद वधू लाना न होकर ,दहेज़ हासिल करना रह गया हो |
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है जो इन सब बातों को झुठलाते हुए सुखद उदाहरण प्रस्तुत करते हैं |मेरे एक अधिवक्ता मित्र की पुत्री का विवाह एक हाई-प्रोफाइल एन.आर.आई. के साथ हुआ है |इस विवाह पर अविश्विसनीय रूप से मात्र एक लाख रूपये व्यय हुए |अमेरिका में शिक्षित उनका दामाद नाईजीरिया में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और उसके सगे सम्बन्धी भारत में महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ हैं | मेरे एक अन्य पत्रकार मित्र की पुत्री का विवाह फौजी पृष्ठभूमि वाले एक हाई-प्रोफाइल कश्मीरी कौल परिवार में हुआ है |उनका दामाद भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल है | पूरा परिवार अत्यंत भद्र है |इस विवाह में भी अविश्वसनीय रूप से लगभग एक लाख रूपये व्यय हुए | दोनों ही प्रकरणों में दहेज़ का कोई लेनदेन नहीं हुआ | क्योंकि वर पक्ष के लोगों ने कन्या पक्ष की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए किसी भी प्रकार के लेनदेन से इंकार कर दिया था और सुशील,सुन्दर व सुशिक्षित वधू पर अपना फोकस रखा | ऐसे उदाहरण विरल भले हों लेकिन रेगिस्तान में किसी मीठे पानी के चश्मे की तरह राहत देने वाले होते हैं | ऐसी दिलदारी अनुकरणीय और प्रणम्य है |हम में से कई लोग जाने अनजाने में दहेज़ का महिमामंडन कर उसे प्रछन्न प्रोत्साहन देते हैं जो नितांत गलत है | अमीरों द्वारा किया गया वैभव-प्रदर्शन उदहारण योग्य नहीं हो सकता | उनकी तो सिर्फ सादगी ही उदाहरण योग्य होती है |अमीरों द्वारा वैभव-प्रदर्शन तो सामान्य बात है लेकिन उनका सादगी का निर्वाह उल्लेख्य होता है क्योंकि 'महाजनो येन गतः स पन्थः' ||